अपने यहां भी जनसत्ता आता है, जब देखा सचिन ने 17 हजार पार कर लिए हैं तो सोच लिया था आज का बॉटम तो प्रभाषजी जरूर लिखेंगे। लेकिन मुझे क्या पता था मेरा अनुमान इतना गलत निकल जाएगा। सचिन के उपलब्धियों पर लिखने वाले प्रभाषजी हमे छोड़कर चले जाएंगे। जब भी प्रभाषजी की बात चलती तो इठलाते हुए मैं हमेशा कहता था जानते हो प्रभाषजी कहां के हैं....इंदौर के हैं। इंदौर में महान लोग होते हैं सच में इंदौर में महान लोग तो नहीं इंदौर में महान पत्रकार जरूर होते हैं। राजेंद्र माथुर फिर प्रभाषदा। जी भारी है सोचता हूं अब मैं कैसे कहूंगा प्रभाषजी इंदौर के हैं...जब से पत्रकारिता की समझ हुई सिर्फ दो नाम सुने राजेंद्र माथुर और प्रभाष जोशी। रज्जू बा को तो देख नहीं सका लेकिन प्रभाषदा को सुना भी मिला भी देखा भी। जब भी वो कागद कारे में अपन लिखते तो मन करता कोई मालवी दिल्ली में कितनी सहजता से अपनी बोली लिख रहा है। आज भी जनसत्ता आया है लेकिन बिना प्रभाषजी और शायद अब ऐसा ही आएगा...