गुरुवार, सितंबर 10, 2009

नईदुनिया दिल्‍ली का जबरदस्‍त प्रयोग

मैं हमेशा से अख़बारों में प्रयोगों का समर्थक रहा हूं। पिछले दिनों एक सुधि मित्र ने टिप्‍पणी की थी, संभलकर बाबू लोगों की मानसिकता अभी भी पिछड़ी है। आज जब नईदुनिया दिल्‍ली का संस्‍करण देखा तो पता चला साढे छह दशक पुराने अख़बार की मानसिकता साढे छह साल के बच्‍चे जितनी नई है जो प्रयोग से नहीं घबराता है। एक ऐसा ही पेज नईदुनिया दिल्‍ली ने छापा है। ये देखने में थोड़ा अटपटा जरूर लगता है लेकिन काबिले तारीफ है। क्‍योंकि हर अजीब चीज देखने उसे जानने की उत्‍सुकता बढ़ाती है। इसलिए मैं ये भी कह सकता हूं, आज इस पेज का पाठकों ने खूब आनंद लिया होगा। वैसे ये प्रयोग साल दो साल में एक बार करने लायक प्रयोग है। प्रयोग क्‍या खुद ही देख लीजिए।