पहले हिंदुस्तान टाइम्स अब टाइम्स ऑफ इंडिया वाले भी पुरानी और दूसरी जगह छपी छपाई ख़बरें देने लगे हैं। स्वाइन फ्लू का वैक्सीन बन रहा। अब स्वाइन फ्लू दूर होगा एक या दो डोज में।
ख़बर की खास बात ये है कि ये पहले पेज पर और बायलाइन है। वो ख़बर एक दिन पहले कोलकाता के टेलीग्राफ में छप चुकी है। जिस University of Leicester में दवा की खोज की बात की जा रही है। वो कहां की है, ये किसी को कुछ पता नहीं है, पूरी ख़बर में लापता है। मैं तो ये समझा की ये यू Leicester यूनिवर्सिटी कहीं असम, मिजोरम की तो नहीं। फिर सर्च किया तो पता चला ये University of Leicester यूके की है। जबकि टेलीग्राफ में साफ साफ लिखा है कि ये यूनिवर्सिटी यूके की है। टेलीग्राफ वालों ने भी ये ख़बर बायलाइन दी है। जबकि ये ख़बर प्रेस एसोसिएशन ने एक दिन पहले ही जारी कर दी थी। समझ नहीं आता इस ख़बर पर बायलाइन किस लिए दे दी। रिपोर्टर ने किया क्या सिर्फ एक एजेंसी की कॉपी उठाई, दो चार डॉक्टरों से बात की और फ्रंट पेज पर शानदार बायलाइन। इस मामले में हिंदी का प्रेस जगत बड़ा खराब है, संपादक बड़ी आसानी से बायलाइन नहीं देते। अगर कोई रिपोर्टर कह दे सर ये बायलाइन तो समझो उसकी खैर नहीं, लेकिन अंगरेजी प्रेस वाले तो चूहा भी मर जाए तो बायलाइन देते हैं।
चाइना भी बना रहा है स्वाइन फ्लू की दवा
हां एक और ख़बर अपना पड़ोसी देश चाइना भी दावा कर रहा है कि वह बस एक कदम दूर है स्वाइन फ्लू की दवा से। ये ख़बर अमेरिका के एक अख़बार में छपी है। ये पूरी दुनिया को मालूम है कि चाइना का माल कितना सस्ता होता है, जब अपन चाइना का फोन, चाइना के खिलौने इस्तेमाल कर सकते हैं तो चाइना की दवा क्यों नहीं। लेकिन अपने अख़बार तो यूके और अमेरिका की वाह वाही में लगे हैं।
ख़बर की खास बात ये है कि ये पहले पेज पर और बायलाइन है। वो ख़बर एक दिन पहले कोलकाता के टेलीग्राफ में छप चुकी है। जिस University of Leicester में दवा की खोज की बात की जा रही है। वो कहां की है, ये किसी को कुछ पता नहीं है, पूरी ख़बर में लापता है। मैं तो ये समझा की ये यू Leicester यूनिवर्सिटी कहीं असम, मिजोरम की तो नहीं। फिर सर्च किया तो पता चला ये University of Leicester यूके की है। जबकि टेलीग्राफ में साफ साफ लिखा है कि ये यूनिवर्सिटी यूके की है। टेलीग्राफ वालों ने भी ये ख़बर बायलाइन दी है। जबकि ये ख़बर प्रेस एसोसिएशन ने एक दिन पहले ही जारी कर दी थी। समझ नहीं आता इस ख़बर पर बायलाइन किस लिए दे दी। रिपोर्टर ने किया क्या सिर्फ एक एजेंसी की कॉपी उठाई, दो चार डॉक्टरों से बात की और फ्रंट पेज पर शानदार बायलाइन। इस मामले में हिंदी का प्रेस जगत बड़ा खराब है, संपादक बड़ी आसानी से बायलाइन नहीं देते। अगर कोई रिपोर्टर कह दे सर ये बायलाइन तो समझो उसकी खैर नहीं, लेकिन अंगरेजी प्रेस वाले तो चूहा भी मर जाए तो बायलाइन देते हैं।
चाइना भी बना रहा है स्वाइन फ्लू की दवा
हां एक और ख़बर अपना पड़ोसी देश चाइना भी दावा कर रहा है कि वह बस एक कदम दूर है स्वाइन फ्लू की दवा से। ये ख़बर अमेरिका के एक अख़बार में छपी है। ये पूरी दुनिया को मालूम है कि चाइना का माल कितना सस्ता होता है, जब अपन चाइना का फोन, चाइना के खिलौने इस्तेमाल कर सकते हैं तो चाइना की दवा क्यों नहीं। लेकिन अपने अख़बार तो यूके और अमेरिका की वाह वाही में लगे हैं।