रविवार, सितंबर 13, 2009

ब्‍लैक एंड व्‍हाइट ही ठीक था जनसत्‍ता



आज का जनसत्‍ता देखा अंतिम पेज खोला, तले में एक फोटो थी जिसके ऊपर ख़बर लिखी गई थी। इतना बुरा प्रयोग तो मैंने पहले कभी नहीं देखा। इतने डार्क फोटो के ऊपर ब्‍लैक टैक्‍सट। वैसे जनसत्‍ता के स्‍पोर्ट्स पेज पर अक्‍सर बहुत बुरे बुरे प्रयोग होते हैं। कभी इतना बुरा कट आउट बनता है कि क्रिकेटर की टोपी कट जाती है, तो कभी हाथ। रंगों के इस्‍तेमाल का तो पूछो मत। लाल पीले, इतने चटक रंग कि क्‍या कहने और रंगों के संयोजन की तो बात ही छोड़ो दो। फ्रंट पेज के बॉटम में ऐसा कलर बॉक्‍स फंसाते हैं कि लीड फोटो दब जाती है। रंगों का इतना बुरा इस्‍तेमाल शाम के अख़बार वाले भी नहीं करते। अगर जनसत्‍ता में ऑपरेटर पेज बनाते हैं तो इन रंगों का इस्‍तेमाल भी वहीं करते होंगे। अगर जनसत्‍ता में संपादकीय के लोग ही पेज बनाते हैं, तो ये बहुत बुरी बात है कि वे इस तरह रंगों का इस्‍तेमाल करते हैं। लेआउट की जनसत्‍ता में बात ही छोड़ो। इसलिए लगता है जब जनसत्‍ता ब्‍लैक एंड व्‍हाइट था तब ज्‍यादा ठीक था।