बुधवार, जून 17, 2009

▐ एक संपादकीय पेज दो दिन – अहमदाबाद टाइम्स ऑफ इंडिया से हुई एक बड़ी चूक ▐


सू रत में चलती कार में एक किशोरी से तीन युवकों द्वारा कथित तौर पर बलात्कार किए जाने की घटना के विरोध में बंद के दौरान हुई हिंसा की तस्‍वीरें देखने पर वो ख़बर विस्‍तार से पढ़नी चाही। गुजराती तो आती नहीं थी हिंदी के अख़बारों के ईपेपर नहीं मिले सो सूरत का टाइम्‍स ऑफ इंडिया संस्करण खोजा लेकिन नहीं मिला। शायद ईपेपर उपलब्‍ध नहीं है, सो अहमदाबाद संस्करण ही खोल लिया। पहले पेज पर पूरी ख़बर बिछी थी। अंदर के पेज भी देख लिए। संपादकीय पेज पर भी नज़र मार ली। दिल्‍ली संस्‍करण से यह पेज अलग था। लेखों में भी अंतर था। सो उत्‍सुकतावश एक दिन पहले (15 जून) का संपादकीय पेज भी देखा। जो १५ पर था वही 16 पर भी था। मैंने सोचा तकनीकी गलती है शायद अपडेट नहीं हुआ होगा। लेकिन जब नज़र तारीख पर गई तो पता चला उस पर 15 जून 2009 अहमदाबाद लिखा था। फिर दिमाग गया कि ईपेपर डालने वालों से तारीख में गलती हो गई होगी। लेकिन असल में वहां एक ही पेज दो अलग-अलग तारीखों के नाम से छपा है। टाइम्‍स जैसे ग्रुप की ऐसी गलती देखकर बहुत अचरच हुआ। लेकिन गलती तो हो गई। एक बात समझ नहीं आती कि वो पेज सामान्‍यत: एक सीनियर न्‍यूज़ एडिटर के अंडर में होता है। वो ऐसी गलती कैसे कर सकता है। फिर पेज दूसरे संपादकीय सहयोगियों की नज़रों से भी तो गुजरा होगा। संपादक ने भी एक बार देखा तो होगा या‍ फिर अहमदाबाद का संपादक संपादकीय पेज पढ़ता ही नहीं। फिर प्‍लांट पर पेज चेक करने के लिए एक संपादकीय का साथी होगा, वो तो सारे पेज जांचता है। क्‍या उसे याद नहीं आया कि यही पेज उसने एक दिन पहले भी देखा था। ये दोबारा कैसे छप गया। लेकिन इतने बड़े ग्रुप के इतने बड़े संस्‍करण में एक महत्‍वपूर्ण पेज जो किसी अख़बार का आईना होता है दोबारा छप गया। यदि कोई ये कहे कि ये तकनीकी गलती थी तो सरासर गलत होगा क्‍योंकि तकनीकी गलती में तारीख अपडेट नहीं होती। हालांकि क्‍वार्क जिसमें अख़बार बनता है वो अपडेट तारीख पेज पर दिखता है। लेकिन उसे चेक जरूर किया जाता है। इसलिए यह कोई तकनीकी नहीं मानवीय गलती है। एक खबर दो पेजों पर छपी तो देखी थी लेकिन पूरा पेज छपने का ये दूसरा मामला मैंने आज देखा है। पहला देश के एक बड़े अख़बार में छपा था। सौभाग्‍य से वह पेज ख़बरों का न होकर विज्ञापनों का था। फिर भी वह अख़बार माफी मांगकर बच गया था। लेकिन टाइम्‍स की इस अक्षम्‍य गलती को रीडर माफ करेगा या नहीं ये तो नहीं पता लेकिन टाइम्‍स को इसके लिए रीडर्स से माफी जरूर मांगनी चाहिए। टाइम्‍स के पेज देखने के लिए राइट क्लिक कर नई विंडो में देख सकते हैं