गुरुवार, मार्च 27, 2008

३५ साल से काम कर रहाहूँ एडिटर नहीं बना tum २७ साल की उम्र में किसी प्रोडक्ट के हेड केसे बन गए

जो हेडिंग दी है वो देहली के बड़े अखबार के बड़े सम्पादक के है । पिछले दिनों उनसे मिलना हुआ उस दौरान ये बात निकली। मैं ये सोच कर बात कर रहा था कि इतना बड़ा आदमी है। लेकिन sale ने aukaad दिखा दी। यार समझा नही आया कि इतना पुराना आदमी मुझसे अपने को अपने कि तुलना कर रहा है।
मुझे गुस्सा आया फिर गर्व भी हुआ कि इतना बड़ा आदमी मुझसे जल रहा है।
लेकिन मामला जलने का नहीं है। मामला है सोच का वो ३५ साल से ८ घंटे कि जॉब कर रहे है ।
लेकिन ७ साल के कैरियर में मैंने १८-१८ घंटे काम किया है । तब जाकर देश के सबसे तेज़ बढ़ते अख़बार में यहाँ तक आया हूँ। दरअसल इनके जैसे बुजुर्गो ने से सिर्फ़ शाम ४ से रात १० तक ड्यूटी की है। विचारों की पत्रकारिता की है । इन्हे क्या मालूम ख़बर के लिए केसे लड़ा जाता है। और बात करते है केसे कम उम्र में आगे aa गए ।
ये उन युवा मेहनतशील पत्रकारों की दुनिया है जहा हर युवा पत्रकार सुबह ७ से 11 कॉलेज जाता है फिर दिनभर एक ख़बर के लिए पसीना बहाता है । समोसा खा कर दिन kaat लेता है। शाम को फिर प्रेस नोट बँटा है अपनी ख़बर के
आलावा। और या कहते है केसे आगे बढ़ गये। ये बार धर्मेन्द्र चौहान की नही हर युवा की है।
अरे अखबारी दुनिया कितनी तेज़ी से bad रही है। हो सकता है जो maine २६ साल में किया वो कोई २० men ही कर दे।
क्यो की अब सिर्फ़ डीसी या टीसी लगाने से कम नही चलता हर ख़बर के साथ ड्रामा करना पड़ता है।
और ये बोलाते है इतने आगे केसे आगये । ये संदेश है उन बुजुर्गो के लिए है जो युवाको आगे नही बढ़ते देखा
सकते। इस लिए बुजुर्गो ये याद रखो अब हर दूसरा युवा पत्रकार जल्दी ग्रो करने वाला है।
िवरलें भी हैं जो 60 की उम्र में 16 से लगते हैं। इंदौर में िवनय लाखे ऐसे संपादक थे िजनकी उम्र 60 से ज्यादा थी लेिकन उनका काम जवानों जैसा था। ऐसे अनेक संपादक हैं जो 60 के होकर जवान हैं। और युवाओं का पसंद करते हैं।एक ये िदल्ली वाले हैं नाम बडे और दर्शन खोटे।
यार गलितयां शुमार हैं लेिकन माफ कर देना यहां िहंदी टाइप करना थाेडा मुिश्कल लग रहा है।बाकी बात होती रहेगी