मंगलवार, मार्च 11, 2008

फिर ये सवाल क्यों कि कल अख़बार अच्छा निकालना।

बॉस आज दिमाग ख़राब है। जब कोई बोलता है की साहब आ रहे हैं। कल अखबार अचछा निकालना है। मन में खटका किक्या मैं रोज ख़राब अख़बार निकलता हूँ। अगर ये सच है तोमुझे जॉब छोड़ देना चाहिए । लेकिन सच तो ये है कि मैंने कभी भी akhabaरिय jओब नही समझा क्योंकि मैंने परिवार के बाद अगर किसी से प्यार किया तो वो अख़बार है। फिर ये सवाल क्यों कि कल अख़बार अच्छा निकालना। क़म्बखत सब लालागिरी है यार जब ये सोचता हूँ कि जोश से कम किया जाए तो राजनीति बीच मी आ जाती है। लेकिन मैं हारूंगा नहीं अख़बारियत के लिए लड़ता रहूँगा। जब तक काम करूंगा ईमानदारी से काम करूंगा । अभी टाइप करने कि स्पीड काम है । गलतियाँ भी बेशुमार हैं । माफ़ी के काबिल तो हू ही बाकि शुरू हुआ है तो काफिला .