बुधवार, जुलाई 08, 2009

अख़बारों के पेज भर गया रे,,,बजट


रेल बजट आया और आम बजट भी आ गया। वित्‍त मंत्री की तरह अख़बारों में भी संशय रहा क्‍या छापे, क्‍या न छापे। कोई भी बजट को पकड़ नहीं पाया कि बजट में आखिर है क्‍या ? यह गरीबों के हित में है या नहीं, अमीरों को फायदा पहुंचा रहा है या नहीं। जितने अख़बार देखे उतने हेडिंग और इंट्रो नजर आए, बजट की समीक्षा नज़र आई। बिजनेस अख़बारों ने जरूर कुछ ठीक किया लेकिन आम आदमी के अख़बार सिवाय इलेशट्रेशन, ग्राफिक्स और फोटो इमेजिंग के अलावा कुछ नहीं मिला। अलबत्‍ता आम दिनों की ख़बरें जरूर इधर-उधर हो गईं।

▐► टाइम्‍स ऑफ इंडिया
शुरुआत टाइम्‍स ऑफ इंडिया से ही करते हैं, विशेष वर्ग के इस अख़बार ने चौंकाने वाला काम किया है। आज के अख़बार में टाइम्‍स ने एक भीख मांगने वाली बच्‍ची की रोते हुए तस्‍वीर दिखाई। हमेशा अपने तामझाम के लिए मशहूर टाइम्‍स इतना सिंपल हो जाएगा सोचा न था। टाइम्‍स ने अपने बजट संस्‍करण के इंट्रो में भावुक होकर जिस लड़की का फोटो छापा है उसी को प्रतीक बताकर गरीब वर्ग का उत्‍थान कर देश को समृद्धि की ओर ले जाया जा सकता है। पूरे अख़बार में बजट ही बजट था, इतने बड़े शहर दिल्‍ली की ख़बर गायब हो गईं। समझ नहीं आया कि कितने लोग सिर्फ बजट पढ़ना चाहते हैं। एक पेज सिटी के लिए दिया उसमें भी लिख दिया है बियॉन्‍ड बजट। कुल मिलाकर बजट ही बजट है। स्‍पोर्ट्स के तीन पेजों में से एक महेंद्र धोनी के जन्‍मदिन पर समर्पित है दूसरा पेज रॉजर फेडरर के नाम है। बजट की ख़बरें खूब हैं लेकिन समझ से परे हैं। 38 पेज के अख़बार में हर आदमी हर ख़बर खोजने में मशक्‍कत कर रहा होगा। सभी संस्‍करणों में प्रथम पेज एक जैसा ही है।

▐► हिंदुस्‍तान टाइम्‍स
हिंदुस्‍तान टाइम्‍स ने प्रणब बेच रहे हैं साबुन की फैक्‍ट्री शीर्षक से लगाकर नीचे एक कार्टून लगाकर बताया है कि बड़ी-बड़ी कं‍पनियों के सीईओ के लिए क्‍या है, बैंकर के लिए क्‍या है, लैक्‍चरर के लिए क्‍या है, बस ये नहीं लिखा कि गरीब के लिए क्‍या है? ये इसलिए लिखना पड़ रहा है क्‍योंकि देश की आधी से ज्‍यादा आबादी गरीब है। शेष अंदर के पेजों पर भी बजट है। कार्टून इलेट्रेशन का प्रयोग कर रोचक बनाने की कोशिश की है। कुल मिलाकर कुछ खास नहीं है।

▐► दैनिक भास्‍कर
भास्‍कर ने अंगरेजी अख़बारों की तरह करने की कोशिश की है। पिछले कुछ सालों से वह बिलकुल अंगरेजी अख़बारों की तरह बजट पेश कर रहा है। अंगरेजी में किसी थीम पर बजट आधारित होता है। इस बार भास्‍कर में मौसम थीम पर बजट है। दो साल पहले हैरी पॉटर की थीम पर चिंदबरम को पेश किया गया था, पिछले साल वाद्य यंत्रों की थीम पर। क्रिएटिव डेस्‍क ने बेहतरीन काम किया है। प्रथम पेज पर हमेशा की तरह लहरी छाए हुए हैं। क्रिऐटिव टीम ने अच्‍छा काम किया है। भास्‍कर ने लिखा है कि बजट में सूखा है। मौसम थीम होने के बाद भी कुछ संस्‍करणों में हेडिंग से गफलत हुई है नागपुर संस्‍करण में महाराष्‍ट्र चुनावों के कारण हेडिंग अपनी थीम से हटकर चुनावी राग, वादों की थाप दिया गया है। सिटी भास्‍कर आज नहीं दिया गया है (दिल्‍ली में सिटी भास्‍कर नहीं है) उसकी जगह बजट भास्‍कर है। कुल मिलाकर हिंदी अख़बारों में भास्‍कर ठीक है।

▐► हिंदुस्‍तान
हिंदुस्‍तान ने लिखा है बंगाली बाबू ने प्रसिद्ध जादूगर पीसी सरकार जैसी जादूगरी दिखाते हुए कमाल कर दिया है। अगली ही दो लाइनों में लिखा है बजट में भाषण था आम आदमी को सपने दिखाकर प्रणब इनकम टैक्‍स में दस हजार की छूट के अलावा कुछ नहीं दे पाए। हिंदुस्‍तान ने साफ लिखा है कि इस बजट में आम आदमी को कुछ नहीं मिला वरना लगभग हर अख़बार गोल-मोल हेडिंग देकर पूरा का पूरा अख़बार बजट को समर्पित कर रहा है। हिंदुस्‍तान ने ऐसा न करते हुए दूसरी ख़बरों को भी जगह दी है। यहां ये बात सही है कि अगर बजट में कुछ नहीं है तो क्‍यों 16 से 35 पेज के अख़बार में सिर्फ और सिर्फ बजट दे रहे हो। प्रणब दा को जादूगर की तरह पेश किया गया है। बैकग्राउंड गुलाबी रखा गया है लेकिन यह गुलाबी रंग ये संकेत देता है कि बजट में गुलाबी सपने दिखाए गए है, जो शायद ही कभी सच हों।

▐► पत्रिका
पत्रिका ने प्रणब दा के बजट को गांवों के लिए अच्‍छा बताया है। इलेशट्रेशन भी कुछ ऐसा ही बनाया जिसमें प्रणब मुखर्जी किसान बने हैं और ट्रैक्‍टर में बैठकर गांव की ओर जा रहे है। बगल में शेयर बाजार पर बिजली गिरी है। लेकिन एक बात अखरती है कि पिछले साल जब राजस्‍थान पत्रिका का विस्‍तार नहीं हुआ था तब अच्‍छे पेज बनते थे। इस बार कंटेट की कमी तो है ही ग्राफिक्‍स भी अच्‍छा नहीं है। अंदर के नौ पेजों पर बजट लेटाया गया है। इंदौर के प्रथम पेज पर एक अर्थशास्‍त्री की टिप्‍ण्‍णी है।

▐► नईदुनिया
नईदुनिया का आइडिया और पत्रिका का आइडिया एक जैसा है। ख़बर को बिलकुल एक जैसे तरीके से ही उठाया गया है। नईदुनिया ने भी दादा की झप्‍पी नाम से वित्‍त मंत्री को ट्रैक्‍टर पर बैठाकर गांव की ओर पहुंचा दिया है। संपूर्ण चित्रण गांव का किया है। अंदर के पेजों पर लिखा गया कि खास नहीं हो पाया बजट। हां नईदुनिया ही एक ऐसा अख़बार है जिसने प्रथम पेज पर दूसरी ख़बरों को भी स्‍थान दिया है। एक महत्‍वपूर्ण ख़बर जिसमें माननीय मुख्‍य न्‍यायाधीश ने अपनी टिप्‍ण्‍णी के लिए माफी मांगी है। प्रथम पेज में वह नईदुनिया पर ही है और कहीं नहीं। बजट की चकाचौंध में सभी अख़बार (जागरण के नेशनल एडिशन को छोड़कर) इस ख़बर को भूल गए शायद कि ये भी प्रथम पेज पर जगह मांगती है। नई दुनिया ने अंदर चार पेजों पर बजट का प्रस्‍तुतिकरण किया है। बिना तामझाम के सिंपल ग्राफिक्‍स के साथ बजट को अच्‍छे से पेश किया गया है। लेकिन पेज 22 ऐसा लगता है जैसे मेट्रीमोनियल छापा गया हो। बुलैट लगाकर फ्लैट टैक्‍सट छोड़ दिया है जबकि अच्‍छे से पेश करने की गुंजाइश भी थी। बजट टीम के नाम देखकर लगता है बजट इंदौर में बना है। दिल्‍ली, इंदौर संस्‍करण से बिलकुल अलग है, सिर्फ प्रथम पेज बाकी अंदर के पेज बिलकुल अलग हैं। इससे ये लगता है कि सिर्फ प्रथम पेज को लेकर ही टीम वर्क हुआ है। शेष इंदौर और दिल्‍ली की टीम ने अलग काम किया है। वैसे दिल्‍ली के अंदर के पेज अच्‍छे हैं। इंदौर-दिल्‍ली की टीम साथ मिलकर काम करती तो निश्चित ही बेहतरीन अख़बार निकल सकता था।

▐► दैनिक जागरण
दैनिक जागरण का राष्‍ट्रीय संस्‍करण दिल्‍ली संस्‍करण से अलग है। दोनों संस्‍करणों में जमीन आसमान का अंतर है। जितनी अच्‍छी तरह से दिल्‍ली संस्‍करण निकला है, उतनी बुरी तरह से राष्‍ट्रीय संस्‍करण में बजट की प्रस्‍तुति की है। लुधियाना, कानपुर और दूसरे अख़बारों का प्रस्‍तुतिकरण अलग है। इससे ये पता चलता है कि जागरण जैसे बड़े अख़बार में सेंट्रल डेस्‍क है जिसका फायदा हर संस्‍करण नहीं लेता। क्‍योंकि ख़बर तो एक ही है बजट, फिर अलग-अलग क्‍यों समझ से परे है। लोकल लेवल पर ख़बरें उठाना एक अलग बात है जब नेशनल ख़बर हो तो सेंट्रल डेस्‍क से भेजा गया पेज प्रकाशित किया जाए तो क्‍या बुराई है। भास्‍कर, टाइम्‍स, एचटी, हिंदुस्‍तान, देशबंधु ने ऐसा ही किया है, उसके सभी संस्‍करणों में एकरूपता है। भोपाल संस्‍करण तो और भी अलग है, वो अलग भी हो सकता है क्‍योंकि संस्‍था एक है लेकिन मालिक अलग-अलग हैं।
▐► अन्‍य अख़बार हरिभूमि, देशबंधु, राज एक्‍सप्रेस, प्रभात ख़बर ने भी प्रयास किया है, लेकिन कामयाब कोई नहीं हो पाया है।