बुधवार, जुलाई 01, 2009

अख़बारों के भरोसे चैनल वाले

कहते हैं न्‍यूज़ चैनल सबसे पहले ख़बर दिखाते हैं। वे सबसे तेज़ होते हैं, लेकिन आजकल ऐसा नहीं हो रहा है। न्‍यूज़ चैनल की दुनिया में ख़बरों की कंगाली का दौर आ गया है। तभी तो उनकी अधिकांश ख़बरें अख़बारों से आती हैं। कभी-कभार एक दो ख़बर ले लेना ठीक है, लेकिन आजकल तो न्‍यूज़ चैनल किसी भी ख़बर को तब गंभीरता से लेते हैं, जब किसी ख़बर को अख़बार प्रमुखता से प्रकाशित करते हैं। पिछले दिनों सभी न्‍यूज़ चैनल दिल्‍ली में बिजली-पानी की किल्‍लत पर ख़बर दिखा रहे थे, उनसे कई दिन पहले टाइम्‍स, नईदुनिया, एचटी और कई अख़बार विशेष पेज़ देकर इन मुद्दों को उठा चुके थे। जब दो-चार जगह बिजली कटौती से नाराज़ लोगों ने तोड़फोड़ की तो न्‍यूज़ चैनलों को लगा, वाकई बिजली कटौती की ख़बर बड़ी है। जिस दिन शाम को अधिकांश चैनल ये कह रहे थे कि दिल्‍ली में बिजली की मांग और आपूर्ति में बड़ा अंतर आ गया है। उस दिन टाइम्‍स ने प्रथम पेज पर उस ख़बर को प्रकाशित किया था जिसमें मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षित ने बिजली वितरण कंपनी को फटकार लगाई थी। इस पर कुछ बेशर्म (माफ कीजिए ऐसा करने पर ऐसे ही शब्‍द इस्‍तेमाल करें तो ठीक है) चैनल कहने लगे सबसे पहले हमने ख़बर बताई थी कि बिजली की कमी है। जबकि उससे पहले उन्‍हें कॉमेडी सर्कस और राखी सावंत के स्‍वयंवर से फुर्सत नहीं थी। वो तो मूलभूत परेशानियों को भूलकर डीयू के एडमिशन और कैंपस के ग्‍लैमर को दिखाने में लगे थे। आज न्‍यूज़ चैनल वाले चिल्‍ला रहे थे, इरफान पठान की शादी है,,,आप उनको बधाई दीजिए,,,यही है वो लड़की शिवांगी जिसने इरफान का दिल चुराया है। लेकिन विजुअल के नाम पर कुछ भी नहीं सिर्फ शिवांगी की तस्‍वीर थी। वो भी अख़बारों से उठाकर एनिमेट की थी। कभी उस तस्‍वीर को दाएं से दिखाते रहे कभी बाएं से। बार-बार इरफान पठान और उनके अब्‍बू का विजुअल दिखाते रहे। ये भी कह रहे थे कि कई बार दोनों की मुलाकात हुई है,दोनों ऑस्‍ट्रेलिया में मिले थे। अरे भई ये समझ नहीं आता कि दोनों मिले हैं आप जानते हैं तो विजुअल क्‍योंकि नहीं, भारत का इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया तो विजुअल जुटाने में माहिर है। दिनभर सभी चैनलों पर इरफान की शादी पर विशेष कार्यक्रम चले लेकिन शिवांगी का विजुअल स्‍टार न्‍यूज़ के अलावा किसी चैनल पर देखने को नहीं मिला। स्‍टार न्‍यूज़ के पास भी बस दो या तीन सेकेंड का विजुअल था जिसे वे बार-बार दिखा रहे थे। एक दौर था (कोई दो साल पहले तक ) जब हर ख़बर इलेक्‍ट्रॉनिक मी‍डिया पहले देता था। अख़बार से पहले लोग ख़बर देख लेते थे। अख़बारों के सामने चुनौती पैदा हो गई थी कि कैसे पाठकों को बांधे रखा जाए, क्‍योंकि हर ख़बर तो पाठक पहले ही न्‍यूज़ चैनलों पर देख लेता था। तब वह अख़बार क्‍यों पढ़ेगा। तब पूरी प्रिंट मीडिया बिरादरी ने अपने कंटेंट को लेकर नए सिरे से सोचना शुरू किया और ख़बर की ख़बर लेना शुरू की। ऐसे पाइंट उठाए जो इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया से छूट जाते थे। अभी हाल ही में एक सर्वे आया है जिसमें बताया है अख़बारों के पाठकों में बढ़ोतरी हुई है, जबकि न्‍यूज़ चैनलों के दर्शकों के जबरदस्‍त कमी आई है। ऐसा नहीं है कि पाठक और दर्शक अलग हैं, ये एक ही आदमी है। जो कभी टीवी देखता है तो कभी अख़बार पढ़ता है। कुछ लोग ही होते हैं जो दोनों में से एक को पसंद करते हैं। क्‍योंकि ये जरूरी नहीं कि जो अख़बार पढ़ता हो वो टीवी नहीं देखता। कुल मिलाकर लोगों ने न्‍यूज़ चैनल देखना कम कर दिया है, और कुछ लोग जो अख़बार नहीं पढ़ते थे वो अख़बार पढ़ने लगे हैं। मेरे कहने का मतलब ये नहीं कि न्‍यूज़ चैनल वाले काम नहीं करते, लेकिन इन दिनों काम नहीं कर रहे हैं। इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया में जो ख़बरों की कमी का दौर चल रहा है, उस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। क्‍योंकि हर दर्शक लॉफ्टर देखकर बोर हो चुका है। कब तक यू ट्यूब के भरोसे चैनलों की जिंदगी चलेगी,,,क्‍योंकि हर आदमी न्‍यूज़ चैनल देखता है लेकिन वहां न्‍यूज़ नहीं मिलती।