रविवार, जून 22, 2008
बर्बर पुलिस?
चैनल पर खबर चल रही थी कि बर्बर मुंबई पुलिस एक समूह विशेष पर लाठियां बरपा रही हैं। ये कैसी पुलिस....। खबर देखकर चैनल के न्यूज सेंस पर दया आ गई। मेरे मन में भी एक सवाल उठा ये कैसा गणतंत्र इसमें ये कैसा विरोध। किसी बाबा ने गार्ड ने गोली चला दी एक समूदाय ने मुंबई में सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया। कोई बसों के शीशे तोड़ रहा है तो कोई रास्ता जाम कर रहा है। कुछ ने तो रेलवे ट्रैक पर खड़ी ट्रेनों पर खूब पत्थर बरसाए खूब तोडफ़ोड़ की। हाईवे जाम कर दिया हाईवे एक बार्डर की तरह हो गया था अगर पार की समझो मौत से सामना। जब रेपिडेक्स एक्शन फोर्स और पुलिस जवानों ने उस समुदाय से हाईवे साफ करवाने के लिए लाठियां भांजी तो पुलिस को बर्बर बता दिया। फिर एक चैनल पर विश्लेषण आया कि अगर पुलिस पहले कदम उठा लेती तो मुंबई नहीं झुलसती। मुझे समझ नहीं आया कि एक वर्ग विशेष के मुट्ठीभर लोगों ने मुंबई सेंट्रल पर तोडफ़ोड़ क्या कर दी। थोड़ी देर के लिए मुंबई की जान लोकल क्या बंद हो गई मुंबई को झुलसा हुआ करार दे दिया। यह वह मुंबई है जो बम ब्लास्ट और घाटकोपर बम ब्लास्ट में भी कभी नहीं हारी यानि झुलसी। लोग कहते हैं अगर यह सीखना है कि कैसे जीया जाता है तो मुंबईकर से सीखा जाए। मुंबई तो नहीं झुलसी लेकिन चैनल ने जरूर झुलसाने वाली खबर जरूर दिखा। कश्मीर शाह स्टेज से गिरी और अमिताभ बच्चन को ठंड लगी जैसी खबरें दिखाने की होड़ में ये चैनल वाले क्यों किसी शहर को झुलसाना चाहते हैं। क्या सीधे-सीधे खबर नहीं दे सकते कि फलां-फलां संप्रदाय के लोगों नेशनल हाईवे जाम किया बदले में पुलिस और आरपीएफ के जवानों ने उन्हें हटाने की कार्रवाई की। अब नवीं मुंबई से मुंबई का सडक़ संपर्क शुरू हो गया है।