शनिवार, अप्रैल 05, 2008

मीडिया की गंभीरता


आप जो अख़बार देख रहे हैं वह पनामा का है। इसकी खासियत एक फोटो है जिसमें एक शहीद की विधवा रो रही है। शहीद सिपाही इराक में तैनात शांति सेना से था। अब आप कहेंगे कि इसमें खास क्या है। हर शहीद की विधवा रोती है। इसमें खास है मीडिया ने कितनी गंभीरता से इस मामले को लिया है। यानि न्यूज़ सैंस की बात है। अगर ये हमारे देश में हुआ होता तो निश्चित ही मनमोहन, सोनिया, अटल.अडवानी, या फिर लेफ्ट के प्रकाश करात के बयान की भेंट चढ़ जाता। ऐसा हुआ भी है जब दस जवान शहीद होते हैं तो खबर बेशक प्रथम पृष्ठ पर होती है लेकिन न्यूज़ बि्रफ में होती है। हमें विदेश के अख़बारों का अध्ययन भी करना चाहिए कि यूरोप या अमेरिका के अख़बारों में क्या छप रहा है। पूरे विश्व मीडिया में सद्दाम हुसैन की फांसी को लेकर गंभीरता थी। अमूमन हर देश के अख़बार ने सद्दाम की फांसी का लीड बनाया लेकिन अमेरिका के झंडाबरदार अख़बार न्यूयार्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट ने सिंगल कालम में उसे जगह दी क्योंकि वह उसके लिए एक अपराधी था। लेकिन यह सर्वविदित है कि यह एक गलती थी। मैं इस पचड़े में नहीं पड़ रहा मैं न्यूज़ के प्लेसमेंट की बात कर रहा हूं। मेरी इतनी ही इल्तजाह है कि पत्रकार साथी खबर को समझें।