कल रेल बजट से सारे अख़बार पटे पडे़ थे। हर कोई दीदी के बजट की तारीफ कर रहा था। क्या बजट है, किराया नहीं बढ़ाया, माल भाड़ा नहीं बढ़ाया, किसी ने बजट को लोकलुभावन खिचड़ी बताया, किसी ने यात्री हित का। लेकिन रेल मंत्री तो रेल मंत्री होता है, वो कभी क्षेत्रवाद से उभर नहीं पाता। जब लालू यादव रेल मंत्री थे, तो हर मुख्य ट्रेन बिहार जरूर जाती थी। अगर कोई नया प्रोजेक्ट है तो बिहार के खाते में जाता था।
इस बार भी ऐसा हुआ लेकिन हवाई चप्पल पहनने वाली ममता दीदी की बाजीगरी किसी को नज़र नहीं आई हर अख़बार ने इस बजट को पांच में साढे तीन या चार अंक तक दे दिए। अख़बार की दुनिया में एक बात कही जाती है, जरूरी नहीं कि किसी चीज को एक्सपोज करने के लिए पूरे पेज की स्टोरी की जाए, बस एक सिंगल बॉक्स ही काफी है। ममता के रेल बजट की पोल भी ऐसे ही खुली है, इस बार वो काम किया है टाइम्स ऑफ इंडिया ने, टाइम्स ने भी पूरे तामझाम के साथ अपना शनिवार का अंक रेल बजट को समर्पित कर दिया, लेकिन प्रथम पेज पर सारी घोषणाएं दिखाने के साथ ये बताया कि कितनी घोषणाएं बंगाल के खाते में गई हैं। अगर दीदी के बजट का अनुपात देखा जाए तो सब कुछ तो बंगाल को ही मिला है।सर्विस टोटल बंगाल का हिस्सा
नई ट्रेनें 309 181
नॉन स्टॉप ट्रेनें 12 4
नई ट्रेनें ५७ 15
बढ़ाई ट्रेनें 27 7
सुपर फास्ट ट्रेनें 3 1
नई लाईंस 53 19
डबल लाईंस 12 4
कोच फैक्ट्री 1 1
नई ट्रेनें 309 181
नॉन स्टॉप ट्रेनें 12 4
नई ट्रेनें ५७ 15
बढ़ाई ट्रेनें 27 7
सुपर फास्ट ट्रेनें 3 1
नई लाईंस 53 19
डबल लाईंस 12 4
कोच फैक्ट्री 1 1
इनडोर स्टेडियम १ १
मेडिकल कॉलेज १८ 4
मेडिकल कॉलेज १८ 4
दूसरे किसी अख़बार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। बिहार के अख़बार ये रोना रोते रहे कि हमारे लालू नहीं हैं इसलिए हमारी उपेक्षा हुई है। महाराष्ट्र के अख़बार इसलिए खुश थे कि उन्हें थोड़ा बहुत मिल गया, क्योंकि अक्टूबर-नवंबर में चुनाव जो है। वहीं मध्यप्रदेश वाले फिर रोना रोते नजर आए कि इस बार भी कुछ नहीं मिला। कुल मिलाकर ये हमारे लिए सीखने वाली बात है कि बजट, जो आम आदमी की रुचि का विषय जरूर है लेकिन उसके पल्ले बहुत कम बातें पड़ती हैं। इसलिए ऐसी बातें निकाली जाएं जिसे वह उस दिन ज्यादा से ज्यादा समझ सके।